बीच बाजार पैदल चल रहे किशोर के पैरों में चोट लगी है, नंगे पैर खडंजा सड़क पर चल रहा है और उधर उसके हाथ में जो बच्चा है, जिसे बाजार में पैदल नहीं चलना उसके पैरों में झक्क सफेद जूते हैं।
कई बार जीवन भी इसी विपर्यय की तरह ही सरे बाजार गुजरता हुआ दिखता है। वो विपर्यय जो आवश्यक है, जो एक घनघोर सत्य है।
कल्पना करें कि हाथ में पकड़ा हुआ बच्चा हम ही हैं। वह किशोर जो बच्चा हाथ में लिये चोटिल कदमों से नंगे पैर सरे बाजार चल रहा है... हमारे माता-पिता का ही रूप है। तब ? ऐसे ही समय हमारी समस्त चेतनायें इस दृश्य को अपने से जोड़ने लगती हैं, अपने बचपन, अपनी जवानी, अपने बुढ़ापे का वह क्रम याद सा हो आता है कि कभी हम भी गोद में थे लेकिन जूते पहनते थे। कभी हमारी भी गोद में कोई बच्चा था लेकिन हम अब भूमिका बदल चोटिल पैरों वाला अभिभावक बन गये हैं और जीवनरूपी बाजार से गुजरते जा रहे हैं....चले जा रहे हैं।
इस दृश्य को देख मुझसे रहा न गया और गाँव की बाजार में एक दुकान की ओट लेते हुए कैमरा क्लिक कर दिया :)
- सतीश पंचम
सचमुच.. जीवन कितना रहस्यपूर्ण है..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.......
चकाचक है!
ReplyDeleteचित्र देख कर मुझे ये लगा कि किशोर बच्चा नौकर है और गोद का बच्चा मालिक का बेटा
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