Friday, July 27, 2012

Random Thoughts

चित्र: सतीश यादव


 हम सभी अपने अपने जीवन के कई-कई खूंटों से बंधे हैं,  कभी कोई खूंटा नौकरी के रूप में है तो कोई खूंटा भार्या के रूप में, कभी पति के रूप में तो कभी बच्चों के रूप में, तो कभी अन्य परिजनों के रूप में हम सभी के जीवन में खूंटा कहीं न कहीं बना ही रहता है और यह जरूरी भी है।
    यहीं देख लिजिए -  पशु और मनुष्य के भेद को यदि थोड़ी देर के लिये भुला दिया जाय तो सोचा जा सकता है कि यदि वह खूंटा न होता तो उसके पास पड़े झौवे में भोजन के लिये रखा चारा भी न होता,  और न ही वह फूस की बनी मड़ैयारूपी आश्रय स्थल होता  जिसमें दिन भर खटने के बाद विश्रांति हेतु खाट बिछी है।
   हां, एक लकड़ी की चौकी भी है जिसे यदि अतिरिक्त सुविधा की बजाय सामाजिक रिश्तों, बैठकों, विचार-विनिमय के ठिये के रूप में देखा जाय तो  खूंटा, खाद्य, आश्रय स्थली, और सामाजिक सरोकारों से जुड़ी एक मुकम्मल तस्वीर सी उभरती है।
- सतीश 

Sunday, July 8, 2012

चिल्ल मार डीजे....




    पिछले कुछ सालों से शादीयों में मनोरंजन का भार डीजे पर आ गया है, डीजे वालों की चांदी तो होती है लेकिन कभी कभार मुश्किल भी आ खड़ी होती है जब एक पक्ष कहता है कि गाना अश्लील है औ दूजा कहता है चलने दिया जाय...शादी बियाह के टैम कलकान ठीक नहीं....लौंडा लपाड़ी हैं थोड़ा तो चलता ही है........इसी चलता है के आलोक में एक और खेल चल रहा होता है जब डीजे के पीछे पीछे चल रही भीड़ खत्म होने पर चपटी खोली जाती है, कभी देसी कभी विदेशी....हां एक और कहते हैं...महाठंडी बियर जो अक्सर ड्राईवर के जिम्मे होती है कि रखो, मांगें तबइ देना ....औ देखो..चच्चा तक खबर न जाय....लेकिन खबर कैसे न जायगी...चच्चा खुद अपना कोटा वहीं से लेकर निकलते हैं.....और डराईबर एक 'कहंरवा' गाना बजा देता है.....ई डराईबर निमहुरा नरम परेला....हई खलसीया बेटहना गरम परेला....तब क्या चच्चा और क्या बेटहना...झूमकत आवेली बरतीया ऐ तनि देख बलमू हो.....टेहकत आवतीया बरतीया...तनि देख बलमू.... 

 लेकिन बलमू लोगों को देखने का होश रहे तब न.....वे तो मस्त हैं महाठंडी बीयर से  :- )

Friday, July 6, 2012

महिला.... मथनी.... मेटी....मट्ठा



   गाँव-गाँव की  मेरी घुमक्कड़ी के दौरान ली गई एक तस्वीर जिसमें एक महिला मथनी से मेटी में  मट्ठा तैयार कर रही है। जिस वक्त मट्ठा मथा जा रहा था उस समय उसका बेटा बगल में इस उम्मीद से खड़ा था कि मट्ठा मथने से जो उपरी सतह पर 'नैनू' (मक्खन) उतरायेगा तो वह खाने मिलेगा। जबकि उसकी माता इस फेर में थी कि थोड़ा सा चख भर ले, बाकि जो बचे वह उपलों की आग पर रख खर करते हुए घी बनाये....लेकिन बच्चा डटा था कि मुझे और 'नैनू' चाहिये  :-)


समय - माठा 'पियउवल' का

स्थान - ऊपी का  एक गाँव