Sunday, April 15, 2012

गाँव का 'बिसाती'


बिसाती आ रहा है.......अबकी बड़े दिन बाद दिखे बंधु !


ठहरो 'यार'.....




2006 में हिट हुई फिल्म 'फना' के नाम की टिकुली भी है....एक टिकली के  पत्ते पर नाम लिखा है - 'हमार निरहु'




'बाकस' तो दुई-दुई लिये हो 'आर'.....



इतना हेयर-पिन ?


नथुनी, बाला, पिन.....



तनिक ठाड़ रहो तो....एक ठो फोटू हेंचना है.......




चलो बाय- बाय.....
      नवंबर 2006 में ली गई मेरे गाँव के बिसाती की तस्वीरें। इनके पास महिलाओं से सम्बन्धित सेन्हुर, टिकुली, आलता, काजल,लाली,पावडर अगड़म-बगड़म तमाम टीम-टाम जो महिलाओं से सम्बन्धित होते हैं वे ही मिलते हैं।
   
    इनके 'बाकस'  में बच्चों के लिये कुछ खिलौने भी होते हैं क्योंकि जब महिलायें इनसे सामान खरीद रही होती हैं तो छोटे बच्चों का करीब होना लाजिमी है। ऐसे में बिसाती उनके लिये भी कुछ न कुछ लिये रहता है। बिसाती से सम्बन्धित कई लोकगीत भी हैं जिनमें परदेश में रहने वाले पति से पत्नी फरियाद करती है कि उसके पास बिसाती को देने के लिये पैसे भी नहीं हैं, कुछ कमा कर भेजो।

       बदलते समय में अब बिसाती कम होने लगे हैं।  महिलायें अब बाजार में खरीददारी के लिये घर से निकलने लगी हैं। बाजार उन्हें विवधताओं से भरे गार्नियर और लैक्मे प्रॉडक्ट उपलब्ध करवा रहा है।  ऐसे में गाँव-गाँव घूम कर केवल महिलाओं के लिये उपयोगी वस्तुओं की बिक्री करने वाले बिसाती आने वाले समय में लुप्त हो जांय तो कोई आश्चर्य नहीं।


Saturday, April 14, 2012

गँवईं शॉपिंग इन दुपहरीया

दुपहरीया बाजार

     गाँवों में अक्सर कुछ महिलायें दोपहर के समय ही बाजार की ओर निकलती हैं क्योंकि दोपहर के वक्त उन्हें दुकानों में ज्यादा भीड़-भाड़ का सामना नहीं करना पड़ता। बड़े-बुजुर्गों से घूंघट-आड़ आदि के झंझट से मुक्ति रहती है और सबसे बढ़कर सुनार के यहां जाने का यही सबसे मुफीद वक्त होता है क्योंकि घर के पुरूष  या तो कहीं बाहर गये होते हैं या दुपहरीया में सो रहे होते हैं । अक्सर पतियों के सामने गहने आदि लेने की बातें महिलायें छुपा जाती हैं या कम बताती हैं क्योंकि अक्सर यही होता है कि भले महिलायें कतर-ब्योंत कर अपने बचाये पैसों से  हल्के फुल्के गहने खरीदें लेकिन पति हमेशा नाराज ही रहते हैं कि क्या करोगी इतना बनवा कर। अब पति क्या जानें कि महिलायें सिर्फ अपना नहीं सोचतीं बल्कि अपनी बेटियों के लिये भी श्नै-श्नै  इंतजाम करती जाती हैं वरना बेटी के बड़ी होने पर कहां से इकट्ठा लायेंगे गहना-गुरिया।

    ऐसी ही एक दुपहरीया का दृश्य है जब महिलायें बाजार की ओर जा रही हैं। बहुत संभव है पहला ठिकाना बिसाती हो जो महिलाओं के लिये टिकुली, सेन्हुर, कजरौटा बेचने का एकमात्र ठिकाना होता है और जहां महिलायें बिसाती से मोलभाव करके अंतत: अपने मन की चीजें ले ही लेती हैं।

    - सतीश पंचम

 

Wednesday, April 4, 2012

देशज दुकनिया




देशज दुकनिया
    जौनपुर के शाही पुल के पास स्थित एक घरेलू लकड़ी के साजो-सामानों से सजी दुकान। आँवले का मुरब्बा बनाते समय आँवले में छेद करने हेतु छेदनी हो या बेलन, अथवा छौंक बघार वाले कलछुल, सभी कुछ ध्यान खेंचते हैं। मूसल जो अब केवल प्रतीकात्मक रूप से ही विवाह के दौरान मंडप में इस्तेमाल होते हैं, वे भी बहुतायत में दिख रहे हैं। उन्हीं सामानों के बीच एक्वाफिना की पानी की बोतल भी रखी है....

और हां, हुक्कों के बगल में शंकर भगवान भी हैं।

- सतीश पंचम