Friday, February 24, 2012

बीच बजरिया...


   बीच बाजार पैदल चल रहे किशोर के पैरों में चोट लगी है, नंगे पैर खडंजा सड़क पर चल रहा है और उधर उसके हाथ में जो बच्चा है, जिसे बाजार में पैदल नहीं चलना उसके पैरों में झक्क सफेद जूते हैं।

   कई बार जीवन भी इसी विपर्यय की तरह ही सरे बाजार गुजरता हुआ दिखता है। वो विपर्यय जो आवश्यक है, जो एक घनघोर सत्य है।

     कल्पना करें कि हाथ में पकड़ा हुआ बच्चा हम ही  हैं। वह किशोर जो बच्चा हाथ में लिये चोटिल कदमों से नंगे पैर सरे बाजार चल रहा है... हमारे  माता-पिता का ही रूप है। तब ?  ऐसे ही समय हमारी समस्त चेतनायें इस दृश्य को अपने से जोड़ने लगती हैं, अपने बचपन, अपनी जवानी, अपने बुढ़ापे का वह क्रम याद सा हो आता है कि कभी हम भी गोद में थे लेकिन जूते पहनते थे। कभी हमारी भी गोद में कोई बच्चा था लेकिन हम अब भूमिका बदल चोटिल पैरों वाला अभिभावक बन गये हैं और जीवनरूपी बाजार से गुजरते जा रहे हैं....चले जा रहे हैं।

 इस दृश्य को देख मुझसे रहा न गया और गाँव की बाजार में एक दुकान की ओट लेते हुए कैमरा क्लिक कर दिया :)

- सतीश पंचम

Tuesday, February 14, 2012

बाँस बहादुर


बाँस को आधिकारिक तौर पर घास की प्रजाति माना जाता है,  कहीं से घास लग तो नहीं रहा  :)
 Photo : Satish Pancham

Monday, February 13, 2012

'छन' भर भेंट

 'छन' (क्षण)  भर भेंट

कुछ दवाई-दरपन
कुछ हारी-बीमारी
बिटिया की बिदाई
कुछ चूड़ी पहनवाई
कुछ रगरा-झगरा
कुछ मरद के कमाई
तनिक सासु क बुराई
तनिक ननद क लगाई

छन भर क भेंट सखी
अउर केतना बताईं

- सतीश पंचम

Sunday, February 12, 2012