मेरे घर के पास स्थित हनुमान मंदिर की सीढ़ियों पर कुछ वर्ष पूर्व चित्रकारी की गई थी। उन चित्रों में से कुछ को मैंने अपने कैमरे में कैद कर लिया। पांच-छह साल बाद वहां अब केवल काई लगी दीवार है, झाड़-झंखाड़ है। उन्हीं छायाचित्रों में से एक है यह छायाचित्र जिसमें मानव के विकास, उपर उठने की जिजिविषा दर्शाई गई है कि किस तरह मानव अपने मूल स्थिति से खुद को उपर विकासक्रम में स्थापित करने हेतु सीढ़ी लाता है, और उपर उठना चाहता है कि तभी उसकी राह रोकने के लिये विषधर भी आ जाते हैं।
- सतीश पंचम
उठान डगर |
मेरे घर के पास स्थित हनुमान मंदिर की सीढ़ियों पर कुछ वर्ष पूर्व चित्रकारी की गई थी। उन चित्रों में से कुछ को मैंने अपने कैमरे में कैद कर लिया। पांच-छह साल बाद वहां अब केवल काई लगी दीवार है, झाड़-झंखाड़ है। उन्हीं छायाचित्रों में से एक है यह छायाचित्र जिसमें मानव के विकास, उपर उठने की जिजिविषा दर्शाई गई है कि किस तरह मानव अपने मूल स्थिति से खुद को उपर विकासक्रम में स्थापित करने हेतु सीढ़ी लाता है, और उपर उठना चाहता है कि तभी उसकी राह रोकने के लिये विषधर भी आ जाते हैं।
- सतीश पंचम
इसे वरली पेंटिंग कहते हैं....यहाँ अक्सर मंदिर के दीवारों पर यह लोक कला देखने को मिल जाती है...
ReplyDeleteमैं सोच रही थी...इस पर एक पोस्ट लिखने की...तब आपके द्वारा ली गयी इस तस्वीर का शायद उपयोग करूँ...(आपकी इजाज़त के साथ :))
beautiful ...
ReplyDeleteइस तरह इसे संजोने और सांझा करने के लिए आपका आभार...
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